महाभारत से पहले.. भाग-2

Oyorooms IN

कल के अंक में हमने लिखा था ..पुराने समय में कौरवों और पांडवों के पूर्वज एक ययाति नाम के राजा थे और खाण्डवप्रस्थ उनकी राजधानी थी, जिसको बाद में पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ के रूप में विकसित किया | ययाति की दो रानियाँ थी |

एक का नाम था देवयानी | देवयानी असुरों के गुरु शुक्राचार्य कि पुत्री थी | और दूसरी असुरों के राजा वृषपर्वा की पुत्री - शर्मिष्ठा |

देवयानी के दो पुत्र हुए | बड़े पुत्र का नाम था यदु और छोटे का नाम था तुर्वसु | बड़ा पुत्र यदु बहुत सदाचारी और बुद्धिमान था | उसके नाम पर यदुवंश चला, जिसमें आगे चलकर श्रीकृष्ण जैसे महानायक का जन्म हुआ |

शर्मिष्ठा के तीन पुत्र हुए | दुह्य, अनु और पुरु | सबसे छोटा पुत्र पुरु बहुत ही पराक्रमी था और पितृ भक्त था | आगे चलकर पुरु को ही राजा ययाति ने अपना उत्तराधिकारी बनाया और वह राजा बना | पुरु के नाम से ही पुरुवंश की शुरुआत हुई |

ययाति के पिता कौन थे, उनके वंश में और कौन-कौन थे? इन सभी कथाओं पर भी हम विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे..

अब आगे ......                                                                                    Google Ads.



महाराज ययाति के बारे में जानने से पहले हम उनके भी पूर्वजों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे और बहुत कुछ जानेंगे | भारतीय संस्कृति के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी से सृष्टि का प्रारंभ हुआ | पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी ने ही सृष्टि रची | ब्रह्मा जी के मन से मरीचि, नयनों से अत्रि, मुँह से अंगिरस, नाभि से पुलह, कर्ण से पुलत्स्य, हस्त से कृतु, प्राण से वशिष्ठ, त्वचा से भृगु, अंगूठे से दक्ष, गोदी से नारद, छाया से कन्दर्भ, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वयंभू, ध्यान से चित्रगुप्त आदि का जन्म हुआ |
ब्रह्मा जी के दाएँ अंगूठे से प्रजापति दक्ष पैदा हुए |
कहते हैं कि ब्रह्मा जी के जो सबसे पहले चार पुत्र सनक, सनन्दन, सनातन तथा सनतकुमार थे, उनको सृष्टि आगे बढाने में कोई रूचि नहीं थी | वे ब्रह्मचारी रहकर ही परमब्रह्म ईश्वर को जानने में ही मस्त रहते थे | उनके इस व्यवहार को देखकर ब्रह्मा जी को बहुत अधिक क्रोध आया और उस क्रोध से एक प्रचंड अग्नि ने जन्म लिया | उस समय ब्रह्मा जी के क्रोध से जलते मस्तक से अर्ध-नारीश्वर रूद्र पैदा हुआ | ब्रह्मा जी ने उस रूद्र को दो भागों में काट दिया | स्त्री वाले भाग का नाम ‘या’ और पुरुष वाले भाग का नाम ‘का’ रख दिया | फिर इन दोनों ने ही उत्तानपाद, प्रियव्रत, आकूति तथा प्रसूति नाम की संतानों को जन्म दिया |
फिर दक्ष से प्रसूति का तथा रूचि से आकूति का विवाह करवाया |
Oyorooms IN दक्ष और प्रसूति के संसर्ग से 24 कन्याओं का जन्म हुआ |


उन कन्याओं के नाम थे - श्रद्धा, लक्ष्मी, तुष्टि, पुष्टि, धृति, मेधा, क्रिया, लज्जा, वपु, बुद्धि, शांति, सिद्धि, ख्याति, सती, कीर्ति, सम्भूति, स्मृति, क्षमा, सन्नति, प्रीति, अनुसूया, ऊर्जा स्वधा और स्वाहा।
दक्ष का एक और विवाह प्रजापति वीरण की कन्या आसिकी से हुआ | आसिकी को वीरणी भी कहा जाता था | वीरणी से दक्ष की 60 कन्याएं उत्पन्न हुई - मरुवती, वसु, भानु, अरुंधती, जामी, लंबा, संकल्प, महूर्त, अदिति, दिति, संध्या, विश्वा, दनु, काष्ठा, इला, मुनि, अरिष्टा, सुरसा, सुरभि, सरमा, क्रोधवषा, तामरा, तिमि, कृतिका, आर्द्रा, पुनर्वसु, रोहिणी, मृगशिरा, सुन्रिता, पुष्य, स्वाति, चित्रा, अश्लेषा, मेघा, फाल्गुनी, हस्ता, अनुराधा, ज्येष्ठा, राधा, विशाखा, मूला, अषाढ़, सर्विष्ठ, सताभिषक, अभिजीत, श्रावण, प्रोष्ठपदस, रेवती, रति, स्वरूपा, अश्वयुज, भरणी, भूता, स्वधा, विनीता, कद्रू, अर्चि, दिशाना, यामिनी और पतंगी |
अदिति के पुत्र विवस्वान हुए | विवस्वान से मनु पैदा हुए, और हम सभी महाराज मनु के वंशज मानव कहलाए |
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ऐसा कहा जाता है कि महाराज मनु के समय में जल प्रलय हुई और केवल मनु ही बचे थे | जल प्रलय के पश्चात मनु से इला का जन्म हुआ और इला से पुरुरवा का | पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया |


दक्ष प्रजापति की किस कन्या का विवाह किसके साथ हुआ और किसकी कौन सी संतान हुई, इस बारे में कल चर्चा करेंगे |


शुभ रात्रि


---आपका अपना


अनिल सोलंकी जाट

Founder and Webmaster

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